हमारे देश में एक भगवान नहीं हैं।
कदम कदम पर एक ।
काली का भयंकर रूप।
प्रत्यंगरा का भयंकर रूप।
वन दुर्गा वन पार्वती का आतंकित रूप ।
घोर अघोर भद्र के रूप।
मुंडमाला के रूप ।
ग्रामीण देव देवियों के रूप।
फिर भी आसुरी शक्तियों के अनायास शासन।
विदेशी जो आए छोड गये अपनी भाषा।
छोड गये अपने धर्म।
छोड गए अपने यादगार।
लूट कर चले गए सर्वश्व
हम मानते हैं रूप - अरूप के देव।
हम चाहते हैं अहिंसा ।
हम हैं बडे सहन शील।
हमें जागना है।
हमें सौचना है।
हमें आर्थिक बल चाहिए। ।
हममें साहस के रूप में
केवल त़्याग की भावनाएँ हैं।
तरक्की हो रहे हैं।
बोल रहे हैं भ्रष्टाचार।
तरक्की हमारी अपनी सोचनी है।
गरीबी भगानी है।
दैश संपन्न । पर धन गाढकर रखते हैं।
न इसका देशोन्नति दान धर्म में लगाते हैं।
हम जानतै हैं मृत्यु ।कुछ न ले जाएँगे ।
फिर भी धन गाढकर ही रहते हैं।
गणेश की मूर्तियाँ बनाकर करोडों रुपये
व्यर्थ करते हैं न खाते हैं न पीते हैं
न गरीबों की सहायता करते हैं।
सत्य है भगवान संतोष नहीं होते।
तरक्की में बाधा और शाप ही देते।
सोचो समझो आगे बढो।
जय हिंद ।भारत माता की जय ।
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