प्यार बिना सारहीन है ,सांसारिक जीवन.कबीर ने अपने पद में लिखा है -माया भरी संसार में शिव कीप्यारी पार्वतीदेवी तो विष्णू की प्यारी लक्ष्मी,ब्रह्मा की प्यारी सरस्वती, भक्त केलिये भगवान प्यारा है.यह प्यार का मोह न ठगता तो ......जग जीवन निरर्थ हो जायेगा.
हम देखते हैं, मरणावस्था में भी प्रिया जन जाब तक न आते,जीव तडपत रहता है.प्रिया के नाम कहने पार आंखेन
घुमती हैं. प्रिया के आने पर प्राण चाले जाते हैं..प्यार का अपना विशिष्ट स्थान है.
साधू-संत-सिद्ध-योगी सब के सब सांसारिक प्यार से हटकर ईश्वरीय प्यार पर लोगों को जोर देते है.
तुलसीदास,तमिळ के अरुनागिरी नाथ,संत पट्टी नात्तार ,राजा भर्तृ हरी,किते ही लोग अपने कटू अनुभव के कारण ,अपनी ईश्वरीय अनुभूती के वश में सांसारिक प्रेम की अश्लीलता को घृणा प्रद पद में लिखकर ,
ईश्वरीय प्रेम ही शाश्वत आनंद का मार्ग दिखाते हैं.ईश्वरीय प्रेम में लेन-देन की चर्चा नहीं.धन की आवश्यकता नहीं.दलाल नहीं.पुजारी
की आवश्यकता नहीं.अपने मन की एकाग्र ध्यान ही प्रधान है.संसार में जीकर सांसारिक प्रेम से दूर रहना,
पारिवारिक संबंध में रहकर भागवत प्रेम में लगना,
ईश्वर प्रेम प्राप्त करना;ईश्वर को रक्षक बनाना.
संत कबीर ने लिखा है----
जाकै राखै साईयां ,मारी न सकके कोई १
बाल न बांका करी सकके ,जो जग वैरी होय.
हम देखते हैं, मरणावस्था में भी प्रिया जन जाब तक न आते,जीव तडपत रहता है.प्रिया के नाम कहने पार आंखेन
घुमती हैं. प्रिया के आने पर प्राण चाले जाते हैं..प्यार का अपना विशिष्ट स्थान है.
साधू-संत-सिद्ध-योगी सब के सब सांसारिक प्यार से हटकर ईश्वरीय प्यार पर लोगों को जोर देते है.
तुलसीदास,तमिळ के अरुनागिरी नाथ,संत पट्टी नात्तार ,राजा भर्तृ हरी,किते ही लोग अपने कटू अनुभव के कारण ,अपनी ईश्वरीय अनुभूती के वश में सांसारिक प्रेम की अश्लीलता को घृणा प्रद पद में लिखकर ,
ईश्वरीय प्रेम ही शाश्वत आनंद का मार्ग दिखाते हैं.ईश्वरीय प्रेम में लेन-देन की चर्चा नहीं.धन की आवश्यकता नहीं.दलाल नहीं.पुजारी
की आवश्यकता नहीं.अपने मन की एकाग्र ध्यान ही प्रधान है.संसार में जीकर सांसारिक प्रेम से दूर रहना,
पारिवारिक संबंध में रहकर भागवत प्रेम में लगना,
ईश्वर प्रेम प्राप्त करना;ईश्वर को रक्षक बनाना.
संत कबीर ने लिखा है----
जाकै राखै साईयां ,मारी न सकके कोई १
बाल न बांका करी सकके ,जो जग वैरी होय.