प्रेम ही संसार है .बिन प्रेम और प्राकृतिक मोह के संसार शून्य सा लगेगा. प्रेम तो केवल मनुष्य से ही सम्बंधित नहीं ,.तमिल कवि संत तिरुवल्लुवर ने कहा --
हड्डी हीन जीवों को धूप जैसे जलाता है, वैसे ही प्रेमहीन मनुष्य को धर्म जलाएगा.
प्रेम जो व्यक्तिगत होता है,तीसरे को स्थान नहीं देता,वह प्रेम त्याग का ऐसा मार्ग दिखाता है
,जो अपनी जान को भी तज सकता है.तमिल आंडाल कवयित्री को भगवान से ऐसे ही प्रेम था.
संत त्यागराज ने अपने पूर्वजों की संपत्ति में केवल पूजा सामग्री मात्र ले लीं.
जीवों से प्रेम और श्रध्दा जगाने सनातन धर्म में कुत्ता, सांप,बैल,गाय,बाज,कछुवा,
मयूर,शेर,सिंह ,सुवर,मूषिक, आदि सबको ईश्वर से सम्बंधित कर दिया.
तमिल पञ्च महाकाव्य वलैयापति में देवी पार्वती ने भगवान शिव की जीव रक्षा की जाँच केलिए
एक चींटी को एक डिब्बे में बंद कर रख दिया.चाँद दिनों के बाद खोलकर देखा तो चींटी ज़िंदा थी.उसके
मुख में चींटी थी. यही ईश्वर प्रेम है.
1 comment:
God is great!!!!!!!!
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