Monday, June 18, 2018

स्वर्ग -नरक

இறுதிசடங்கின் போது தாயின் சவப்பெட்டி விழுந்து நசுக்கியதில் மகன் மரணம்

अश्रु! कितने प्रकार के भाव उत्पन्न करते हैं?
दया? क्रोध? नफरत? आनंद?
वात्सल्य?शोक? करुणा?
गर्व? कायरता?
न जाने अश्रु क्या क्या करता हैं?
रोते हैं स्वार्थ सिद्ध के लिए.
रोते हैं दया प्राप्त करने.
रोते हैं शोक प्रकट करने?
रोते हैं आनंद के लिए.
रोते हैं गलतीछिपाने के लिए.
रोते हैं बचने केलिए.
रोते है बच्चेभूख मिटाने केलिए,
हठ में रोने वाले,हटाने रोनेवाले
दिखावे केलिए रोनेवाले
रोना दुर्बलता है, कायरता है.
धूलआँखों में पड़े अश्रु की बूँदें टपकती है.
अश्रु! साधक है, रोडक है, रक्षक हैं.
अतः स्त्रियाँ अधिक रोती है.
एक फिल्मी गाना----बादल रोतेहैं, मैं भीरोताहूँ.
सोचा--काले बदल रोते हैं,
दुःख के काले बादल रुलाते हैं.
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स्वर्ग -नरक
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कहते हैं अच्छे -बुरे ,पाप -पुण्य के कर्म -फल के अनुसार ,
मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक मिलेगा. सही है ?
समाज के व्यवाहर देखने लगा तो आँखें खुली.
कर्म -फल तो ऊपर नहीं ,इसी धरती पर ही .
वह पूर्व जन कर्म फल हो या इस जन्म का पता नहीं,
पहली श्रेणी का स्नातक प्रमाण पात्र पाकर
लौटने ही वाला था तो अचानक दुर्घटना में चल बसा ,
वह तो चल बसा , उसके माता -पिता यही तड़पने लगे.यह नरक वेदना यहीं इकलौता बेटा अल्प आयु में ,
सोचो कर्म फल की वेदना ऊपर नहीं , धरती पर;
बुढापा जितना अभिशाप ,वेदना तो नरक तुलय.
मन तो चाहता है मैं कर सकता हूँ सब कुछ ,
बेटे -बहु ,पोते -पोती से मिलजुलकर नाचने -कूदने की चाह,
पर आँखें धुंधली ,कान सुनता नहीं ,नाक खो गयी सूँघने की शक्ति .
खाना बचती नहीं ,पाखाना नियत्रित नहीं ,
सब कहते बदबू ,पर बुढापा समझती नहीं ;
शरीर में झुर्रियां पद गयी, सर तो हिलती रहती.
तेज़ चलने की चाह मन में उठती ,पर दो कदम चलना मुश्किल.
सब मिलकर खाते बूढ़े को अलग दूर.
सब यही चाहते चल बस्ते तो झंझट से झूठ.
ऐसे भी कुछ बूढ़े वृद्धाश्रम में ,वह भी दो तरह के.
गरीबों के लिए वृद्ध अनाथ आश्रम है तो
दूसरा अमीर वृद्धाश्रम. पैसे अदाकरो ,आनंद से जिओ.
एक पापियों का दूसरा पुण्यात्माओं का.
तीसरे तरह के नरक तुल्य
बूढ़े भीख माँग अपने परिवार को भी संभालते
.कितने लूले लंगड़े ,असाध्य रोगी, कोढ़ी ,
देखा धरती में ही स्वर्ग -नरक.

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