Saturday, January 28, 2012

prem

प्रेम /प्यार /इश्क = ढाई अक्षर  /

बिन प्रेम के नर, नर नहीं नर पिशाश .

प्रेम यह शब्द जादू करता है.
ऐसे जादू शब्द जिसको जिसकेलिए 
पकड़ लेता  है ,वह आसानी    से,
छोड़ता नहीं.
दो जोड़ी प्रेम या काम वासना से उत्पन्न नर,
सांसारिक प्रेम के चक्कर में ,
क्या-क्या नहीं करता.
अपहरण करता है नारी का,
लूटता है धन
 का.
द्रोही बनता है देश का.
जग का मग भूल,
बनता दास नशे  का./नारी का/धन का.
शान्ति की खोज में ,
शान्ति  खो बैठता.
संत   कबीर कहते=

पोथी पढ़ी  पढ़ी जग भया,पंडित भया न कोय .
ढाई अक्षर प्रेम का, सो पढ़े पंडित होय.












  


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