भद्र गिरियार सिद्ध पुरुष
उज्जैन के राजा भद्र गिरी. तमिल भाषा के प्रसिद्ध अठारह सिद्ध पुरुषों में एक हैं.
तमिल के सिद्ध पट्टिनत्तार एक बार उज्जैन के काली के मंदिर के दर्शन के बाद एक गणेश मंदिर में ध्यान मग्न बैठे हुए थे. तब कुछ चोर राजमहल में चोरी करके आये थे. उन चोरों ने एक मोती की माला फेंकी तो वह पट्टिनत्तार के गले में पडी. राजा के सिपाही चोर के तलाश में आये. उन्होंने पट्टिनत्तार के गले में मोती की माला देखी. सिपाही उनको चोर समझकर
राजा भद्र गिरि के सामने ले गए. राजा बिना सोचे विचारे उनको बली शूल में लटकाने की सजा सुनायी.
पर वह शूल पेड़ जल गया. राजा को अपनी गलती मालूम हुई. वे अपने राजा पद त्यागकर पट्टिनत्तार के साथ
साधू बनकर निकले.
पट्टिनत्तार को उन्होंने अपने गुरु मान लिया .
दोनों तिरूविडै मरुदूर के मंदिर में साधू बनकर ठहरे.
शिष्य रोज़ भिक्षा माँगकर गुरु को खिलाता . एक दिन उन्होंने एक कुतिया को खिलाया तो वह उनके साथ रह गया. एक दिन एक भिखारी ने पट्टिनत्तार से भीख माँगी तो उन्होंने कहा-- दूसरे गोपुर के द्वार पर एक कुटुम्बी रहता है , उससे माँगो. पत्तिरागिरियार समझ गए और उस कुतिया पर अपने भिक्षा पात्र फेंका कुत्ता मर गया.
वे बिलकुल साधू और सिद्ध पुरुष बन गए.
फिर सिद्ध पुरुष बनकर सिद्ध गीत गाने में लग गए.
उनके ग्रंथों में एक है ==पत्तिरागिरियार सत्य ज्ञान प्रलाप.
गणेश वन्दना :--
मुक्ति प्रद ज्ञान देने के प्रलाप गाने
श्री गणेश की कृपा कब पाऊंगा ?
मूल : तमिल :- मुक्ति तरुम ज्ञान मोलियाम पुलाम्बल सोल्ल
अत्ति मुकवन अरुल पेरुवतु एककालम.
ग्रन्थ :--
१. आन्गारम उल्लडक्की ऐम्पुलनैच चुट्टरुत्तुत
तून्गामल तूंगिच सुकम पेरुतल एककालं.?
अहंकार तजकर ,पंचेद्रियों को नियंत्रण में रखकर
ईश्वरीय ध्यान में सुख कब प्राप्त करूँगा?
२. नींगाच शिवयोग नित्तिरै कोंडेयिरुन्तु
तेंगाक करुण तेक्कुवतु एककालं .
शिव से मिलकर सदा शिव की याद में मेरा मन ;
जब उनकी करुणा प्राप्त होगा.
३. मेरा मन ईश्वर की करुणा से खाली है,
सत्यज्ञान (ब्रह्मज्ञान )की वह कमी ,
कब प्राप्त होगा ?
मूल :-तेंगाक करुनै वेल्लम तेककियिरून्तुणपतर्कू
वांगामल विट्टकुरै वन्त्तडुप्प्तु येक्कालं।
४. निरंतर दुखी होकर जीने के कारण की गणेश वन्दना :--
मुक्ति प्रद ज्ञान देने के प्रलाप गाने
श्री गणेश की कृपा कब पाऊंगा ?
मूल : तमिल :- मुक्ति तरुम ज्ञान मोलियाम पुलाम्बल सोल्ल
अत्ति मुकवन अरुल पेरुवतु एककालम.
ग्रन्थ :--
१. आन्गारम उल्लडक्की ऐम्पुलनैच चुट्टरुत्तुत
तून्गामल तूंगिच सुकम पेरुतल एककालं.?
अहंकार तजकर ,पंचेद्रियों को नियंत्रण में रखकर
ईश्वरीय ध्यान में सुख कब प्राप्त करूँगा?
२. नींगाच शिवयोग नित्तिरै कोंडेयिरुन्तु
तेंगाक करुण तेक्कुवतु एककालं .
शिव से मिलकर सदा शिव की याद में मेरा मन ;
जब उनकी करुणा प्राप्त होगा.
३. मेरा मन ईश्वर की करुणा से खाली है,
सत्यज्ञान (ब्रह्मज्ञान )की वह कमी ,
कब प्राप्त होगा ?
मूल :-तेंगाक करुनै वेल्लम तेककियिरून्तुणपतर्कू
वांगामल विट्टकुरै वन्त्तडुप्प्तु येक्कालं।
माया को मिटाना कब प्राप्त होगा ?
५. जन्म के कारण की माया रुपी अज्ञान की सेना
जीतकर मन के किले को पकड़ना कब प्राप्त होगा ?
मायाप्पिरवी मयक्कत्तै ऊडरुत्तुक
काया पुरिक्कोटटैक् कैक्कोल्वतु एक्कालं।
६. मन रुपी किले को वश में करने शिवानुभूति की
शक्ति कब प्राप्त होगी ?
मूल ;-
७. बच्चों- सा मन , बहरे- गूंगे के समान,भूत -समान
तेरी कृपा के बंधन में फंसकर रहने का अवसर कब प्राप्त होगा ?