Saturday, May 14, 2016

मुख पुस्तिका।

अजनबी है हम ।
अपरिचित हम।
जाने अनजाने
अनदेखे संपर्क में
आ जाते हैं।
बिना देखे दोस्ती
न जाने प्यार
हंस बनता दूत।
मेघ देता संदेश।
वैग्ञानिक युग में तो
मुख पुस्तिका द्वारा बंधन।
कलि युग की दोस्ती
हाथ हाथ में होतीे हैं
दोस्ती। कली बढ
फूल बन फूल ता फलता
खिलते हैं चेहरा।
दोस्ती बंधन प्यार बंधन
कभी कभी शादी बंधन।
ईश्वरीय बंधन।
मुख पुस्तिका बंधन।
दिन दिन रक्षा बंधन।
हीरों से सज्जित भगावान
साल में एक ही दिन ।
आपके दर्शनार्थ ।
कितना निकट दर्शन ।
तिरुमलै बालाजी का।
मंगल प्रदायिनी आनंद प्रद ।

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