Tuesday, January 26, 2016

दुनिया

महादेव  है मन में ,अतःकोई चिंता नहीं।
  कहने में   तो   श्रेष्ठ ,पर चंचल मन  मानता नहीं ।
  आसपास के  बाह्याडंबर  माया मोह अश्लीलता  देख
मन शैतानियत  सोचता है तात्कालीन सुख
शाश्वत सुख पर पर्दा  डाल दैता है
नतीजा यह होता है 
बाह्य सुख आडंबर  का दृश्य ,
सफेद बाल के काले आकार
नकली सुंदर आँखें 
भीतर भिन्न गोलि यों का सेवन
दशरत महाराज दुखी जीवन
राम का रुदन कृष्ण की माया जाल
धर्म की रक्शा के ऩाम अधर्म की चाल।
रावण का मोह यों ही कटता  मिटता संसार ।
दिखावे की शांती मानसिक अशांती
पैसे पद सब कुछ संतान भाग्य नहीं
संतान भाग्य है पर एक योग्य  तो दूसरा कुल नाश।
पत्नी को कुछ अपनी उंगली से नचाते तो
कुछ लोगों की पत्नीयाँ रखैल पतियों की आँखों में
उंगलियाँ डाल नचाती है
आज की दुनियाँ में स्त्रियें को भी रखैला होता है
करती हैं कुंती का अनुकरण।
पद नाम यश लाभ पैसों के बल पर।
तीन हजार के उत्पादन माल कई दलालों के हाथ
बदल बदल
दस हजार तक तक बढ जाता है।
नौवी कक्षा की किताब का दाम २८०/-
कमिशन बीस प्रतिशत।
तब दाम तो २००/
दो सौ  लेखक  प्रिं टर प्रू फ रीडर   इश्तिहार
सब को बाँटने के बाद  भी मिलता है लाभ।
प्रेम चंद गरीब महाकवि भारती गरीब
गुलजारीलाल नंदा गरीब ।
चाल चालाकी जाननेवाले नामी अमीर ।
यही दुनिया का चक्कर।

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